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हिंदी एकांउंटिंग एजुकेशन

में आप का स्वागत है | इसमें अध्ययन सामग्री तौर पर 100 हिंदी में लेख है | व इस निःशुलक विश्विद्यालय में इन लेखों की मदद से आप पड़, देख व सिख सकते हो

आओ अपनी पढ़ाई शुरू करें

प्रो. विनोद कुमार की आत्मकथा



दोस्तों आज हम सेलिब्रेट कर रहे है सातवां जन्मदिवस आज से सात साल पहले १९ जनुअरी २००८ को हमने ऑनलाइन वर्क स्टार्ट किया था । जिससे हमने अक्कौटिंग के क्षेत्र में काम किया । लोगों को एडुकेट किया अकॉउटिंग के विषय में । धीरे धीरे हमने कुछ वीडियो जो एसवीटूशन जर्नल ह्वे माउस में डाले ।इस के इलावा अकॉउटिंग एजुकेशन धीरे धीरे हम इस की प्रोग्रेस की तरफ चल दिए । और आज सातवे जनम दिवस पर मुझे बहुत ही ख़ुशी हो रही है की आपके आशीर्वाद से आपके प्रेम और आपके प्यार से हम सफलता की उचाइओं को प्राप्त कर लिया है तो यह काम था जो सिस्टम था यह कैसे आगे आया । उसके विषय में मैं आपको बताना चाहूंगा ।

             

   देखिए जो भी सफल व्यकि हैं या आज हैं यां पहले थे जो नीचे से ऊपर जाते हैं जो आज मैं  अपनी आतम कथा आपको बताना चाहता हूँ कि जीवन में आप कैसे तरक्की कर सकते हो । अगर मेरे जीवन से आपको मोटिविशन मिलता हैऔर मेरे जीवन से आपको तरक्की करने का रास्ता मिलता है  तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी कि जो मैंने काम किये वो आपके फायदे के लिए उपयोगी सिद्ध हुए । 


मेरी शिक्षा

तो आपको मैं  बताता हूं की मैं इंसान एक आम इंसान जो मिडल फैमिली में पैदा हुआ हूँ । स्टार्टिंग 10th किया उसके बाद +२ कॉमर्स की उसके बाद B.com की उसके बाद M.com की । जो एजुकेशन मेरी है वो है M.com । 

मेरी पहली कमाई

पर स्टार्टिंग में अपना जो कैरियर है जिसे हम कहते है  रोज़गार प्राप्त करना तो वो शुरू हुआ जब मैं 10th क्लास में था ।  तो मेरे भाई साहेब मेरे साथ ही हैं तो उन्होंने कहा की कुछ न कुछ छुटियाँ हो गयी हैं तो आप अख़बार बाँटने का काम कीजिए । मुझे बहुत ख़ुशी हुई । मैने बहुत आनंद लिया कि यह अच्छा काम है काम करना चाहिए  । तो मुझे १५०/-रुपये मिले तो फर्स्ट टाइम मैने अख़बार बाँटने का काम किया । बहुत आनंद आया । काम करने में आनंद आता है । तो धीरे धीरे मेने सोचा कि यह मेरी जिंदगी में पहली तनख्वा है । मेने एक महीने के १५०/रूपए लिए । तो उससे कुछ आगे चला तो ऐसे मैंने अख़बार बेचने वाले से काम स्टार्ट किया।   

मेरी पहली शिक्षण अनुभव                 

 बच्चों को पढ़ाना अनाथ बच्चों को पढ़ाना । जैसे ही B.com हुई तो एक मास्टर जी है मथुरा दास जी उन्होंने कहा के कुछ बच्चे अनाथ हैं उनको हमने पढ़ाना है । मेने यह भी काम बहुत दिलचस्पी से किया और पांच साल लगातार बच्चों को पढ़ाया तो इससे मुझको एक महीने के सिर्फ १०००/-रूपए मिलते थे । तो उसके लिए जो मेरी ऑफिसियल ड्यूटी थी वो सिर्फ एक घंटा थी । मैंने कहा कि जो यह एक घंटा है उससे बच्चों का कुछ भी विकास नहीं होने वाला । बच्चों की कोई भी तरक्की नहीं होने वाली । मुझे कम से कम चार घंटे यहां पढ़ाना ही चाहिए । और मुझे अच्छी तरह याद है कि चार घंटे पढ़ाकर भी मुझे तस्सली नहीं होती थी । बच्चे थक जाते थे तो मैं फ्हिर भी पढ़ाता रहता था क्युंकि मुझे आनंद आता था ।

                       

पहली बात नीचे से ऊपर जाइए और दूसरा अपने काम में आनंदित हो जाइए । चौथी क्लास का बच्चा है पांचवी क्लास का बच्चा है दसवीं क्लास का बच्चा है वहां +२ का बच्चा है मैं दिल लगा के पढ़ाता जाता था इग्लिश भी मैथमेटिक्स भी साइन्स भी हिस्ट्री भी २० बच्चों का ऐसा ग्रुप होता था । दिन रात मैं यही सोचता था कि इनकी तरक्की कैसे की जाये । अगर आज की date में मैने M.com प्राप्त करली तो मेरा ग्यान उनसे अच्छा है अपने level तक उनको कैसे ले जाया जाए । तो बहुत ख़ुशी की बात है कि बहुत से बच्चे आज तरक्की में है । कुछ अच्छी कम्पनिओं में वो लगे हुए है । इनफ़ोसिस कंपनी है वो एक हैदराबाद में सैट हो गया है बच्चा । ऐसे ही कुछ होर बच्चे है ऐसी जगयों पर सैट हो गए हैं । 


विक्रेता के रूप में मेरे सीखने के अनुभव

तो उसके बाद मेरे माइंड में आया कि क्यों ना सेल्स के एरिया में काम किया जाए तो एज़ ए सेल्समेन मैं फर्स्ट टाइम चंडीगढ़ गया । वहां मार्केटिंग करनी थी । मेरा जो काम था मार्केटिंग का था तो मुझे क्या है २०वी मंजिल के ऊपर जो बाथरूम में टाइल्स लगी होती है वाल टाइल्स वो सेल करनी थी । वहां भी दिल लगाकर काम किया ।

लैब सहायक के रूप में मेरे सीखने के अनुभव

 एक बार मेरे मास्टर जी है वो मुझे लेकर गए अपना लबोर्ट्री असिस्टेंट तो वहां भी मेने काम किया छोटे छोटे काम । अख़बार बेचना अनाथ बच्चों को पढ़ाना ,मार्केटिंग का काम ,लबोर्ट्री असिस्टेंट वहां मेरा काम क्या था की जो केमिकल्स होते है उसे मैडम को देना तांकि वो उसके ऊपर एक्सप्रीमेंट कर सके । मेरी तनख्वा थी २०००/- ततो वहां भी मेने दिल लगाकर काम किया ।

एक गांव के स्कूल में शिक्षक के रूप में मेरा शिक्षण अनुभव 

 उसके बाद मुझे काम मिला ६वी , ७वी , ८वी को ठेके पर पढ़ाना है । एक साल तक लगातार मैं जाता रहा । उसकी तनख्वा थी २५०० /- । देखो आप का एक्सपेरिएंस बड़ रहा है इसलिए धीरे धीरे नीचे से ऊपर की और बड़े ।पर मन में एक ही लगन हो कि मुझे ऊपर की तरफ जाना है क्योकि क्या होता है जो ऊपर उठ रहा है बीच में  उसका मन जो चंचल है उसको बीच में नीचे गिराता है ।यह काम नही हो सकता ऐसे नही हो सकता वैसे नही हो सकता । मुसीबतें है मेरे पास धन नही है मैं कैसे तरक्की कर सकता हूँ । तो में आपको बता रहा था कि अलग अलग जॉब्स भी मेने की है । जैसे अखबारों को बेचना एक छोटा काम है पर अच्छा काम है ।

इस Autobiography को  English में पड़े । 


नाम

अध्ययन,1,अध्यात्मिक शिक्षा,2,अर्थशास्त्र शिक्षा,2,कम्पूटर शिक्षा,2,कानून शिक्षा,4,क्लोजिंग स्टॉक,1,गणित शिक्षा,2,छात्र,1,जर्नल प्रविष्टियाँ,42,टैली शिक्षा,15,प्रावधान,1,प्रेरणा,2,बैलेंस शीट,1,भंडार,1,राजधानी,1,राजस्व भंडार,1,लेखा,1,लेखा शब्दकोश,3,लेखांकन शिक्षा,49,विज्ञान शिक्षा,2,वित्त,1,वित्त शिक्षा,6,वित्तीय स्थिति विवरण,1,विदेशी मुद्रा,1,विनोद कुमार,1,शिक्षण शिक्षा,9,शिक्षा,2,सुनार शिक्षा,1,स्वास्थ्य शिक्षा,1,
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एकाउंटिंग एजुकेशन : प्रो. विनोद कुमार की आत्मकथा
प्रो. विनोद कुमार की आत्मकथा
प्यारे दोस्तों आइये जीवन को बदल देने वाली प्रो. विनोद कुमार की आत्मकथा सरल हिंदी में पढ़ें ।
एकाउंटिंग एजुकेशन
http://hi.svtuition.org/p/autobiography-of-prof-vinod-kumar-in.html
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