इंग्लिश में शिक्षण को टीचिंग कहते है । जब एक गुरु अपने विद्यार्थी को ज्ञान देता है तो इसे ही शिक्षण कहा जाता है । प्राचीन कल से ही ऋषि मुनि शिक्षण का कार्य कर रहे है ।
१. सबसे पहले वे विद्यार्थों को अपना चरित्र सुधरने की शिक्षा देते है तथा कहते है हे प्रिये विद्यार्थों कभी भी अपना चरित्र मत खत्म करो । एक बार धन खत्म हो जाये तो फिर आ जाये गा , एक भार स्वास्थ्य चला जाये तो फिर आ जाये गा पर चरित्र का विनाश हो जाने से तो दुर्गति हि दुर्गति होती है । इस को सभालने के लिए रूप , शब्द, गंध , स्पर्श आदि मथुनों से रोका जाता है ।
२. चरित्र की शिक्षा देने के बाद गुरु विद्यार्थी को अक्षर ज्ञान देता है । उसे संस्कृत , हिंदी , गणित , इतिहास , भूगोल तथा विज्ञानं की शिक्षा दी जाती है
३. उपरोक्त शिक्षा देने के लिए कक्षा एक से दस होती है । दस वर्ष तक गुरु शिष्य को अपने पास रखता है । गुरु उसके हरेक कार्य पर नजर रखता है ।
शिक्षण से अद्यापक विद्यार्थी की आंखे खोल देता है । अगर मेरे अद्यापक ने मुझे हिंदी न सिखाई होती तो मै आज शिक्षण क्या है न लिख सकता । इस लिए शिक्षण के पेशे को सबसे अच्छा माना गया है क्योंकि जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव अद्यापक का ही होता है । इस लिए हरेक अद्यापक की यह जिमेवारी है कि वह अपनी शिक्षण विधि में सुधर लाए जिस से विद्यार्थी उनकी बात आसानी से सीख सके ।
१. सबसे पहले वे विद्यार्थों को अपना चरित्र सुधरने की शिक्षा देते है तथा कहते है हे प्रिये विद्यार्थों कभी भी अपना चरित्र मत खत्म करो । एक बार धन खत्म हो जाये तो फिर आ जाये गा , एक भार स्वास्थ्य चला जाये तो फिर आ जाये गा पर चरित्र का विनाश हो जाने से तो दुर्गति हि दुर्गति होती है । इस को सभालने के लिए रूप , शब्द, गंध , स्पर्श आदि मथुनों से रोका जाता है ।
२. चरित्र की शिक्षा देने के बाद गुरु विद्यार्थी को अक्षर ज्ञान देता है । उसे संस्कृत , हिंदी , गणित , इतिहास , भूगोल तथा विज्ञानं की शिक्षा दी जाती है
३. उपरोक्त शिक्षा देने के लिए कक्षा एक से दस होती है । दस वर्ष तक गुरु शिष्य को अपने पास रखता है । गुरु उसके हरेक कार्य पर नजर रखता है ।
शिक्षण से अद्यापक विद्यार्थी की आंखे खोल देता है । अगर मेरे अद्यापक ने मुझे हिंदी न सिखाई होती तो मै आज शिक्षण क्या है न लिख सकता । इस लिए शिक्षण के पेशे को सबसे अच्छा माना गया है क्योंकि जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव अद्यापक का ही होता है । इस लिए हरेक अद्यापक की यह जिमेवारी है कि वह अपनी शिक्षण विधि में सुधर लाए जिस से विद्यार्थी उनकी बात आसानी से सीख सके ।
Paribhasit
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